





Sambhog Se Samadhi Ki Aur (संभोग से समाधि की ओर)
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आज तक मनुष्य की सारी संस्कृतियों ने सैक्स का, काम का, वासना का विरोध किया है। इस विरोध ने, मनुष्य के भीतर प्रेम के जन्म की संभावना तोड़ दी, नष्ट कर दी। इस निषेध ने… क्योंकि सच्चाई यह है कि प्रेम की सारी यात्रा का प्राथमिक बिन्दु काम है, सैक्स है।
प्रेम की यात्रा का जन्म, गंगोत्री-जहां से गंगा पैदा होगी प्रेम की- वह सैक्स है, वह काम है।
और उसके सब दुश्मन हैं। सारी संस्कृतियां, और सारे धर्म, और सारे गुरु और सारे महात्मा तो गंगोत्री पर ही चोट कर दी। वही रोक दिया। पाप है काम, जहर है काम।
और हमने सोचा भी नहीं कि काम की ऊर्जा ही, सैक्स इनर्जी ही, अंततः प्रेम में परिवर्तित होती है और रूपांतरित होती है।
क्या आपको पता है, धर्म के श्रेष्ठतम अनुभव में ‘मैं’ बिल्कुल मिट जाता है, अहंकार बिल्कुल शून्य हो जाता है ?
सैक्स के अनुभव में क्षण भर को अहंकार मिटता है। लगता है कि हूं या नहीं। एक क्षण को विलीन हो जाता है ‘मेरापन’ का भाव।
दूसरी घटना घटती है : एक क्षण के लिए समय मिट जाता है, टाइम-लेसनेस पैदा हो जाती है।
समाधि का जो अनुभव है, वहां समय नहीं रह जाता है। वह कालातीत है। समय विलीन हो जाता है। न कोई अतीत है, न कोई भविष्य -शुद्ध वर्तमान रह जाता है।
दो तत्व हैं, जिसकी वजह से आदमी सैक्स की तरफ आतुर होता है और पागल होता है। यह आतुरता स्त्री के शरीर के लिए नहीं है पुरुष की, न पुरुष के शरीर के लिए स्त्री की है। यह आतुरता शरीर के लिए बिल्कुल भी नहीं है।
यह आतुरता किसी और ही बात के लिए है। यह आतुरता है – अहंकार-शून्यता का अनुभव।
लेकिन समय-शून्य और अहंकार-शून्य होने के लिए आतुरता क्यों है ?
क्योंकि जैसे ही अहंकार मिटता है, आत्मा की झलक उपलब्ध होती है। जैसे ही समय मिटता है, परमात्मा की झलक उपलब्ध होती है।
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